Friday, 24 July 2020

Nazm - by me

अरमां मेरे  हर रोज़ , क्यों जलते हैं दिल में ,

कैसी आग हैं ये , जो कभी बुझ सकती नहीं..

 

हर रोज़ होती हैं , किस्मत से जंग मेरी ,

हार जाता हूं मगर , हार मानता मैं नहीं ..

 

एक अरसा हो गया , चलते - चलते मुझको ,

सोचा कई बार , मगर रुका मैं नहीं ..

 

फिर रुक कर जब देखा , शीशें में ख़ुदको ,

जानता था वो चेहरा , मगर पेहचाना मैं नहीं ..

 

दिल करता हैं उतार दूँनक़ाब मैं बहादुरी का ,

एक मुद्दत हो गईमगर रोया मैं नहीं ...

 

🖋 Kumail Saif


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