अरमां मेरे हर रोज़ , क्यों जलते हैं दिल में ,
कैसी आग हैं ये , जो कभी बुझ सकती नहीं..
हर रोज़ होती हैं , किस्मत से जंग मेरी ,
हार जाता हूं मगर , हार मानता मैं नहीं ..
एक अरसा हो गया , चलते - चलते मुझको ,
सोचा कई बार , मगर रुका मैं नहीं ..
फिर रुक कर जब देखा , शीशें में ख़ुदको ,
जानता था वो चेहरा , मगर पेहचाना मैं नहीं ..
दिल करता हैं उतार दूँ, नक़ाब मैं बहादुरी का ,
एक मुद्दत
हो गई, मगर रोया मैं नहीं ...
🖋 Kumail Saif